🚩सिसकती मासूमियत

 डॉ. प्रियंका रेड्डी के सम्मान में एक कविता, 

 A poem in honor of Dr. Priyanka Reddy

Dr.Priyanka Reddy,Dr.Priyanka Reddy reaf story
Priyanka Reddy


हैलो फ्रेंड्स,मैं सौरभ राज डॉ. प्रियंका रेड्डी के सम्मान में एक कविता रची है,

जिसका शीर्षक है सिसकती मासूमियत।:-

कविता

जो इस प्रकार से है।
लिखी नहीं है हास्य की भाषा,
न ही गजल सुनाता हूँ,
कविता लिखनी आती नहीं है चीखें लिखता जाता हूँ।।1।।

देश मेरा जल रहा है
खून मासूम का पीने में,
तो राम मंदिर या बाबरी का पक्ष नहीं मैं लाया हूँ,
घायल भारत चीख रहा है चीख सुनाने आया हूँ।।2।।

या खुदा अजब तेरी अभिलाषा है,
गज़ब तेरी परिभाषा है,
मत भेज किसी आसमां की परी को,
यहाँ आने की उसकी हैसियत नहीं,
अंत समय में मिलता सिर्फ सिसकती मासूमियत है।।3।।

भारत के कई भाइयों ने न जाने प्रियंका रेड्डी जैसी कितनी बहनों को खो दिया ।
मैं उसका भाई होने के नाते कहना चाहूंगा।:-
जली नहीं सिर्फ तू मेरी बहना,
जला माँ भारती का स्वाभिमान है,
हैदराबाद की धरती पर जला उस दिन पूरा हिंदुस्तान है।।4।।

अब तो जागो संसद वालों पानी सर के पार गया,
शांति,स्वेद प्रचम अपना देखो गिरा यूं भू पर है,
शर्म करो  विषपान करो,
अब भाई को दो जिम्मेवारी
तुम दिल्ली में आराम करो।।5।। 

याद रहे बस याद रहे अगर बात बहन की इज्जत की हो,
 हम दागी भी बन सकते हैं।
दिल्ली अगर यूं मौन रही,
हम बागी भी बन सकते हैं।।6।।

सुन लो,अरे! संसद वालों सुन लो,
हवा उड़ती हुई पक्षी की बाजू तोड़ देती है-2
कोई एक घटना जीने की जिज्ञासा तोड़ देती है
थोड़ी बहुत तो गैरत जरूरी होती है, अरे!
थोड़ी बहुत गैरत तो जरूरी होती है,
वरना तवायफ भी किसी मौके पर घूँघरु तोड़ देती है।।7।।

ऐसा न हो रूप धरे वो काली का,
तो खप्पर भरने निकल पड़े।
ऐसा न हो हो रूप धरे वो चंडी का,
तो मुंडी लेकर निकल पड़े,
ऐसा न हो कि तुम यूं ही उलझे रहो वोट के फेरा-फेरों में,और घर की लक्ष्मी निकल पड़े युद्ध के मैदानों ।।8।।

अंत में मैं बस इतना कहना चाहूंगा कि।:-
"सिंहासन को भा नहीं सकता!!
चूल्हे का हथियार हूँ,
सच कहना अगर गददेदारी है,
तो मैं गद्देदार हूँ"।।9।।